जानें मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि व लाभ।

जानें मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि व लाभ।

मकर संक्रांति के पर्व को हिंदू धर्म व शास्त्रों में काफ़ी महत्व दिया गया है। इस त्यौहार को भारत में बहुत हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति को विभिन्न नाम से जाना जाता है। इस पर्व को भारत के राज्यों में विभिन्न तरीकों से बड़ी खुशी के साथ मनाया जाता है। अलग-अलग परंपराओं के रंगों से सजा यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मकर संक्रांति क्यों और कब मनाई जाती है?

पौष माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति की तिथि सूर्य देव की चाल तय करती है। जब सूर्य धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्य के गोचर के समय के अनुसार ही मकर संक्रांति की तिथि तय करी जाती है।
इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी व 15 जनवरी दोनों दिन बताई जा रही है। लेकिन ज्योतिषीयों,  पंचांगों व सूर्य के गोचर के तिथि के अनुसार 14 जनवरी को ही सबसे ज्यादा मकर संक्रांति के लिए महत्व दिया गया है क्युंकि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश सूर्यास्त से पहले ही हो रहा है।

मकर संक्रांति का महत्व व इसे कैसे मनाते हैं?

हमारे पुराणों में युं तो बहुत सारे पूजा- पाठ व पर्वों का महत्व है किन्तु इन सब में मकर संक्रांति के पर्व का महत्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन से सूर्य का गृहों में प्रवेश होता है और मकर संक्रांति वाले दिन किया गया जप-तप, पूजा-पाठ, व दान 365 दिनों में सबसे श्रेष्ठ होता है।
मकर संक्रांति वाले दिन सुबह उठकर नदी में स्नान   करते वक्त सूर्य देव को जल अर्पित करते हैं और उन्हें तिल व गुड़ भी अर्पित करते हैं। अगर आप नदी में नहाने नहीं जा सकते तो अपने घर में स्नान करते वक्त पानी में तिल व गुड़ डालके स्नान करें और फिर सूर्य देव को जल अर्पित करें। आप पूजा-पाठ में सूर्य देव, विषणु जी, लक्ष्मी जी व गणेश जी की पूजा या अन्य किसी भी देवी-देवता का पाठ अवश्य करें। मकर संक्रांति के दिन तिल व गुड़ से बने लडडू खाते हैं व अन्य पकवान भी बनते हैं।

2022 में मकर संक्रांति का मुहूर्त।

प्रसिद्ध पंचांगों के अनुसार जो मकर संक्रांति का मुहूर्त रहेगा वो कुछ इस प्रकार है-
पुण्यकाल मुहूर्त – 14 जनवरी को सुबह 7:15 बजे से श्याम 5:44 बजे तक।
महा पुण्यकाल मुहूर्त – 14 जनवरी सुबह 9:00 बजे से सुबह 10:30 बजे तक। व दोपहर 1:32 बजे से लेकर दोपहर 3:28 बजे तक।
उत्तम मुहूर्त – 14 जनवरी को दोपहर 2:13 बजे से सूरज ढलने तक।
इन मुहूर्त में दान करना व पूजा-पाठ करना काफ़ी लाभ दायक होगा।

मकर संक्रांति में किये गय कार्यों के लाभ।

मकर संक्रांति में ज्यादा से ज्यादा लोगों को चीज़े दान करना सबसे ज्यादा लाभ होता है। इस दिन खिचड़ी, तिल व गुड़ को और इनके बने हुए लड्डू को सूर्य देव को चढ़ा के गरीबों में दान करने से हमारे पुण्य में वृद्धि होती है व पापों में कमी आती है। तिल का दान करने से राहु-केतु और शनि का साढे साती भी आपकी राशि में से कम होता है।
दाल, चावल, गेहूँ आदि का दान करने से आपके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी और न कभी अकाल मृत्यु होगी। सड़क हादसों से भी परिवार की रक्षा होती है। कंभल व कपड़े दान करने से आपके परिवार में शांति होती है। सुबह नदी में स्नान करने से शरीर में ऊर्जा का संचार व अंदर से शांति प्राप्त होती है। पूजा-पाठ करने से आपको जीवन में सरलता, सुख व समृधि की प्राप्ति होती।

मकर संक्रांति किन क्षेत्रों में मनाई जाती है। व अन्य नाम क्या-क्या है?

मकर संक्रांति को पूरे देश के साथ-साथ नेपाल में भी बहुत हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।भारत के विभिन्न राज्यों व जगाहों पे विभिन्न प्रकार के नाम से मकर संक्रांति को मानते है और मनाते हैं। जैसे-
1) राजस्‍थान में इस दिन बहु अपनी सास को मिठाईयां और फल देकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं। इसके अलावा वहां किसी भी सौभाग्‍य की वस्‍तु को 14 की संख्‍या में दान करने का अलग ही महत्‍व बताया गया है।

2) महाराष्‍ट्र में लोग एक-दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और कहते हैं -तिल गुड घ्या अणि गोड गोड बोलै। यानी तिल गुड़ खाओ और मीठा-मीठा बोलो। इसके अलावा इस दिन गूल नामक हलवे को बांटने की भी प्रथा है।

3) बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जानते हैं। यहां उड़द की दाल, चावल, तिल, खटाई और ऊनी वस्‍त्र दान करने की परंपरा है।

4) असम में इसे ‘माघ- बिहू’ और ‘ भोगाली-बिहू’ के नाम से जानते हैं।

5) तमिलनाडु व केरल में तो इस पर्व को चार दिनों तक मनाते हैं। यहाँ पहला दिन ‘ भोगी – पोंगल, दूसरा दिन ‘सूर्य- पोंगल’, तीसरा दिन ‘मट्टू- पोंगल’ और चौथे दिन को ‘कन्‍या- पोंगल’ के रूप में मनाते हैं। यहां दिनों के मुताबिक पूजा और अर्चना की जाती है।

6) बंगाल में इस पर्व पर गंगासागर पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है। यहाँ इस पर्व के दिन स्‍नान करने के बाद तिल दान करने की प्रथा है। कहा जाता है कि इसी दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्‍ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखा था। साथ ही इसी दिन मां गंगा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सागर में जा मिली थीं। यही वजह है कि हर साल मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में भारी भीड़ होती है।

7) हरियाणा और पंजाब में यह पर्व 14 जनवरी से एक दिन पूर्व मनाते हैं। वहां इस पर्व को ‘लोहड़ी’ के रूप में मनाया करते हैं। इस दिन अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने मक्‍के की उसमें आहुत‍ि दी जाती है। यह पर्व नई-नवेली दुल्‍हनों और नवजात बच्‍चे के लिए बेहद खास होता है। इस पर्व पर सभी एक-दूसरे को तिल की बनीं मिठाईयां खिलाते हैं और लोहड़ी लोकगीत गाते हैं।

8) उत्‍तर प्रदेश में मकर संक्रांति को ‘दान का पर्व’ कहा जाता है। इसे 14 जनवरी को मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इसी दिन से यानी कि 14 जनवरी से पृथ्‍वी पर अच्‍छे दिनों की शुरुआत होती है और शुभ कार्य किए जा सकते हैं। संक्रांति के दिन स्‍नान के बाद दान देने की परंपरा है। गंगा घाटों पर मेलों का भी आयोजन होता है। पूरे प्रदेश में इसे खिचड़ी के नाम से जानते हैं। प्रदेश में इस दिन हर जगह आसमान पर रंग-बिरंगी पतंगें लहराती हुई नजर आती हैं।

9) नेपाल में श्रद्धालु इस दिन अच्‍छी फसल के लिए ईश्‍वर को धन्‍यवाद देते हैं और प्रार्थना करते हैं कि सभी पर उनकी कृपा हमेशा बनीं रहे। वहां इस पर्व को ‘फसल का त्‍योहार’ या फिर ‘ किसानों के त्‍योहार’ के रूप में भी जानते हैं। बता दें कि नेपाल में मकर संक्रांति के दिन सार्वजनिक अवकाश होता है।

10) इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेशगोवा, सिक्किम में मकर संक्रांति या संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।

 

  • इस प्रकार भारत के पुराणों व संस्कृति की झलक भारत के विभिन्न राज्यों से आती है व पूरे भारत में दिखाई देती है और जिसके लिए भारत विश्व में प्रसिद्ध है व विश्व में आप कहीं भी रहते हों मकर संक्रांति का महत्व आप सभी के जीवन में है।

 

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